हिन्दू धर्म में सबसे जागृत देवी है मां कालिका। मां कालिका को खासतौर पर बंगाल और असम में पूजा जाता है। मां काली को देवी दुर्गा की दस महाविद्याओं में से एक माना जाता है।

मां काली के चार रूप है- दक्षिणा
काली, शमशान काली, मातृ काली और महाकाली। मां कालिका के यूं तो हजारों
मंदिर है, लेकिन 5 मंदिर ऐसे हैं जिनका कालिका पुराण में उल्लेख मिलता है।
कालिका के दरबार में जो एक बार चला जाता
है उसका नाम-पता दर्ज हो जाता है। यहां यदि दान मिलता है तो दंड भी। माता
के नाम से एक अलग ही पुराण है, जिसमें उनकी महिमा का वर्णन है।
काली को माता जगदम्बा की महामाया
कहा गया है। मां ने सती और पार्वती के रूप में जन्म लिया था। सती रूप में
ही उन्होंने 10 महाविद्याओं के माध्यम से अपने 10 जन्मों की शिव को झांकी
दिखा दी थी।
1. दक्षिणेश्वर काली मंदिर, (पश्चिम बंगाल)

रामकृष्ण परमहंस की आराध्या देवी मां
कालिका का कोलकाता में विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। इस स्थान पर सती देह की
दाहिने पैर की चार अंगुलियां गिरी थी। इसलिए यह सती के 52 शक्तिपीठों में
शामिल है।
इस स्थान पर 1847 में जान बाजार की
महारानी रासमणि ने मंदिर का निर्माण करवाया था। 25 एकड़ क्षेत्र में फैले
इस मंदिर का निर्माण कार्य सन् 1855 पूरा हुआ। कोलकाता के उत्तर में
विवेकानंद पुल के पास स्थित इस पूरे क्षेत्र को कालीघाट कहते हैं।

उज्जैन के कालीघाट स्थित कालिका माता
का प्राचीन मंदिर हैं, जिसे गढ़ कालिका के नाम से जाना जाता है। उज्जैन
क्षेत्र में मां हरसिद्धि शक्तिपीठ होने के कारण इस क्षेत्र का महत्व बढ़
जाता है। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि उज्जैन में शिप्रा नदी के तट के
पास स्थित भैरव पर्वत पर मां भगवती सती के ओष्ठ गिरे थे।
तांत्रिकों की देवी कालिका के इस
चमत्कारिक मंदिर की प्राचीनता के विषय में कोई नहीं जानता, फिर भी माना
जाता है कि इसकी स्थापना महाभारत काल में हुई थी, लेकिन मूर्ति सतयुग के
काल की है। बाद में इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार सम्राट हर्षवर्धन
द्वारा किए जाने का उल्लेख मिलता है। स्टेटकाल में ग्वालियर के महाराजा ने
इसका पुनर्निर्माण कराया। कालजयी कवि कालिदास गढ़ कालिका देवी के उपासक थे।

गुजरात की ऊंची पहाड़ी पावागढ़ पर बसा
मां कालिका का शक्तिपीठ सबसे जाग्रत माना जाता है। यहां स्थित काली मां को
महाकाली कहा जाता है। कालिका माता का यह प्रसिद्ध मंदिर मां के शक्तिपीठों
में से एक है। ऐसा माना जाता है कि मां पार्वती के दाहिने पैर की
अंगुलियां पावागढ़ पर्वत पर गिरी थी।
यह मंदिर गुजरात की प्राचीन राजधानी
चंपारण्य के पास स्थित है, जो वडोदरा शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर है।
पावागढ़ मंदिर ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। रोप-वे से उतरने के बाद
आपको लगभग 250 सीढ़ियां चढ़ना होंगी, तब जाकर आप मंदिर के मुख्य द्वार तक
पहुंचेंगे।

इस कालिका मंदिर की स्थापना दसवीं
शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने की थी। कैलाश यात्रा पर यहां पहुंचे
जगद्गुरु शंकराचार्य ने लोगों की रक्षा के लिए मां काली के विग्रह की
स्थापना पेड़ की एक जड़ पर की थी। इस स्थान पर 1947 में एक मंदिर बना दिया
गया।
लोक मान्यता के अनुसार इस क्षेत्र में
काल का आतंक था। वह हर साल एक नरबलि लेता था। वह अदृश्य काल जिसका भी नाम
लेता, उसकी तत्काल मृत्यु हो जाती थी। लोग परेशान थे। परेशान लोगों ने
शंकराचार्य से अपनी आपबीती सुनाई। जगद्गुरु ने स्थानीय लोहारों के हाथों
लोहे के नौ कड़ाहे बनवाए। लोक मान्यताओं के अनुसार उन्होंने अदृश्य काल को
सात कड़ाहों के नीचे दबा दिया। इसके ऊपर एक विशाल शिला रख दी। उन्होंने
यहां एक पेड़ की जड़ पर मां काली की स्थापना की। तब से काल का खौफ खत्म हो
गया।
5. भीमाकाली मंदिर, शिमला (हिमाचल)

शिमला से करीब 180 किलोमीटर की दूरी
पर सराहन में व्यास नदी के तट पर भीमाकाली मंदिर स्थित है। माना जाता है कि
यहां पर देवी सती के कान गिरे थे। इसलिए यह शक्तिपीठ के रुप में जाना जाता
है। यहां पर देवी ने भीम रुप धारण करके असुरों का वध किया था इसलिए देवी
भीमा कहलाती हैं। यहां देवी काली की पूजा होती है। कहते हैं भगवान श्री
कृष्ण ने यहां वाणासुर का वध किया था।
इसके आलावा कालिका के प्राचीन मंदिर,
गोवा के नार्थ गोवा में महामाया, कर्नाटक के बेलगाम में, पंजाब के चंडीगढ़
में और कश्मीर में स्थित है।
No comments:
Post a Comment