मानव सभ्यता का उद्भव और संस्कृति का प्रारंभिक विकास नदी के किनारे ही हुआ। ऋग्वेद में आर्यों के निवास स्थान को 'सप्तसिन्धु' प्रदेश कहा गया है। ऋग्वेद के नदीसूक्त (10/75) में आर्य निवास में प्रवाहित होने वाली नदियों का वर्णन मिलता है, जो मुख्य हैं:- कुंभा (काबुल नदी), क्रुगु (कुर्रम), गोमती (गोमल), सिन्धु, परुष्णी (रावी), शुतुद्री (सतलुज), वितस्ता (झेलम), सरस्वती, यमुना तथा गंगा।
संपूर्ण जम्बूद्वीप का एक छोटा हिस्सा भारतवर्ष था और संपूर्ण भारतवर्ष का एक छोटा-सा हिस्सा आर्यावर्त था। भारत के मध्य में नर्मदा और गोदावरी, तो दक्षिण में कृष्ण और कावेरी थी। भारत के एक और सिन्धु नदी और उसकी सहायक नदियां बहती हैं तो दूसरी ओर ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियां बहती हैं। दोनों के बीच गंगा का जल भारत के हृदय में है। तीनों और उनकी सहायक नदियों से जुड़ा यह संपूर्ण क्षेत्र भारतवर्ष कहलाता था।
कुंभा, क्रुगु, गोमती, सिन्धु, परुष्णी, शुतुद्री, सतलुज, विवस्ता, सरस्वती, यमुना, गंगा, नर्मदा, महानदी, ब्रह्मपुत्र, ताप्ती, कृष्णा, गोदावरी, कावेरी और ब्रह्मपुत्र को भारत की प्रमुख नदियां माना जाता है।
नर्मदा (मध्यप्रदेश-गुजरात से अरब की खाड़ी में लीन), महानदी (सिहवा रायपुर छत्तीसगढ़, उड़ीसा से बंगाल की खाड़ी में लीन), ब्रह्मपुत्र (भारत असम- बांग्लादेश से बंगाल की खाड़ी में लीन), ताप्ती, कृष्णा (महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र), गोदावरी (महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश से बंगाल की खाड़ी में लीन), कावेरी (सह्याद्रि पर्वत कर्नाटक से तमिलनाडु, बंगाल की खाड़ी में लीन)
1. सिन्धु नदी : सिन्धु
के बिना हिन्दू वैसे ही है, जैसे प्राण के बिना शरीर, अर्थ के बिना शब्द
हैं। गंगा से पहले हिन्दू संस्कृति में सिन्धु की ही महिमा थी। सिन्धु से
ही हिन्दुओं का इतिहास है। सिन्धु का अर्थ जलराशि होता है। सिन्धु नदी का
भारत और हिन्दू इतिहास में सबसे ज्यादा महत्व है।
3,600 किलोमीटर
लंबी और कई किलोमीटर चौड़ी इस नदी का उल्लेख वेदों में अनेक स्थानों पर
है। इस नदी के किनारे ही वैदिक धर्म और संस्कृति का उद्गम और विस्तार हुआ
है। वाल्मीकि रामायण में सिन्धु को महानदी की संज्ञा दी गई है। जैन ग्रंथ
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति में सिन्धु नदी का वर्णन मिलता है।
सिन्धु की सहायक नदियां : सिन्धु
की पश्चिम की ओर की सहायक नदियों- कुभा सुवास्तु, कुमु और गोमती का
उल्लेख भी ऋग्वेद में है। इस नदी की सहायक नदियां- वितस्ता, चन्द्रभागा,
ईरावती, विपासा और शुतुद्री है। इसमें शुतुद्री सबसे बड़ी उपनदी है।
शुतुद्री नदी पर ही एशिया का सबसे बड़ा भागड़ा-नांगल बांध बना है। झेलम,
चिनाब, रावी, व्यास एवं सतलुज सिन्ध नदी की प्रमुख सहायक नदियां हैं। इनके
अतिरिक्त गिलगिट, काबुल, स्वात, कुर्रम, टोची, गोमल, संगर आदि अन्य सहायक
नदियां हैं।
सिन्धु का उद्गम और मार्ग : चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज (सीएएस) के वैज्ञानिकों ने ब्रह्मपुत्र के
मार्ग का उपग्रह से ली गई तस्वीरों का विश्लेषण करने के साथ
भारत-पाकिस्तान से बहने वाली सिन्धु और म्यांमार के रास्ते बहने वाली
सालवीन और ईरावती के बहाव के बारे में भी पूरा विवरण जुटाया है।
नए
शोध परिणामों के मुताबिक सिन्धु नदी का उद्गम तिब्बत के गेजी काउंटी में
कैलाश के उत्तर-पूर्व से होता है। नए शोध के मुताबिक, सिन्धु नदी 3,600
किलोमीटर लंबी है, जबकि पहले इसकी लंबाई 2,900 से 3,200 किलोमीटर मानी
जाती थी। इसका क्षेत्रफल 10 लाख वर्ग किलोमीटर से भी ज्यादा है। सिन्धु
नदी भारत से होकर गुजरती है लेकिन इसका मुख्य इस्तेमाल भारत-पाक जल संधि के
तहत पाकिस्तान करता है।
पहले
माना जाता था कि यह तिब्बत के मानसरोवर के निकट सिन-का-बाब नामक स्थान से
सिन्धु नदी निकलती है। यह नदी हिमालय की दुर्गम कंदराओं से गुजरती हुई
कश्मीर और गिलगिट से होती हुई पाकिस्तान में प्रवेश करती है। सिन्धु भारत
से बहती हुई पाकिस्तान में 120 किमी लंबी सीमा तय करती हुई सुलेमान के
निकट पाक-सीमा में प्रवेश करती है। पाकिस्तान के मैदानी इलाकों में बहती
हुई यह नदी कराची के दक्षिण में अरब सागर में गिरती है। इस नदी ने पूर्व
में अपना रास्ता कई बार बदला है। 1245 ई. तक यह मुल्तान के पश्चिमी इलाके
में बहती थी। 200 वर्ष पूर्व यह नदी गुजरात के पास कच्छ में विचरण करते
हुए अरब सागर में गिरती थी। अनुसंधान कहते हैं कि 1819 के भूकंप के कारण
भुज के पास प्राकृतिक बांध बन गए और सिन्धु नदी का पानी का आना वहां रुक
गया जिससे कच्छ का रण धीरे-धीरे सूख गया।
सिन्धु के तीर्थ : मु्ल्तान
में सिन्धु-चिनाब के किनारे पर श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब की याद में एक
सूर्य मंदिर बना है। इसका वर्णन महाभारत में भी है। इस मंदिर का स्वरूप
कोणार्क के सूर्य मंदिर से मिलता-जुलता है, लेकिन अब सब कुछ नष्ट कर दिया
गया है। यही नहीं, सिन्धु किनारे के सारे हिन्दू तीर्थ मुस्लिम उत्थान काल
में तोड़ दिए गए। सिन्धु नदी के मुहाने पर (हिंगोल नदी के तट पर)
पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के हिंगलाज नामक स्थान पर, कराची से 144
किलोमीटर दूर उत्तर-पश्चिम में स्थित है। माता हिंगलाज (या हिंगलाज) का
मंदिर, जो 52 शक्तिपीठों में से एक है।
सिन्धु तट पर : सिन्धु
के तट पर ही भारतीयों (हिन्दू, मुसलमानों आदि) के पूर्वजों ने प्राचीन
सभ्यता और धर्म की नींव रखी थी। सिन्धु घाटी में कई प्राचीन नगरों को खोद
निकाला गया है। इसमें मोहनजोदड़ो और हड़प्पा प्रमुख हैं। सिन्धु घाटी की
सभ्यता 3000 हजार ईसा पूर्व थी।
2. वितस्ता नदी : सिन्धु की सहायक वितस्ता (झेलम) नदी के किनारे जम्मू व कश्मीर की राजधानी श्रीनगर स्थित है। झेलम नदी हिमालय के शेषनाग झरने से प्रस्फुटित होकर कश्मीर में बहती हुई पाकिस्तान में पहुंचती है और झांग मघियाना नगर के पास चिनाब में समाहित हो जाती है। झेलम का जो प्रवाह मार्ग प्राचीनकाल में था प्राय: अब भी वही है केवल चिनाब-झेलम संगम का निकटवर्ती मार्ग काफी बदल गया है। यह नदी 2,130 किलोमीटर तक प्रवाहित होती है। नैसर्गिक सौंदर्य की इस अनुपम कश्मीर घाटी का निर्माण झेलम नदी द्वारा ही हुआ है।
‘संसार में अगर कहीं स्वर्ग है,
तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है।’
वितस्ता को देखकर सम्राट जहांगीर ने वितस्ता नदी के उद्गम को देखकर ऊपर का वचन कहा था।
वितस्ता का इतिहास : वितस्ता नदी के पास 14 मनुओं की परंपरा के प्रथम मनु स्वायंभुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा निवास करते थे। माना जाता है कि मानव की उत्पत्ति इसी नदी के पास हुई। वितस्ता को आजकल झेलम नदी कहा जाता है। इस नदी के पास ही पोरस और सिकंदर का युद्ध हुआ था। यह नदी कश्मीर घाटी के बीच से निकलकर इसे दो हिस्सों में बांटती है। आज यह नदी गंदे नाले की शक्ल ले चुकी है।
बदलते नाम : वितस्ता (विवस्ता) के उद्गम स्थान को कश्मीरी लोग वेरीनाग कहते हैं। कश्मीरी भाषा में झेलम को 'व्येथ' कहा गया है और पंजाबी में इसे बीहत कहते हैं। यह पूर्व में पश्चिमी पाकिस्तान के प्रसिद्ध नगर झेलम के निकट से बहती थी इसीलिए इसे झेलम कहा जाने लगा।
वितस्ता के तीर्थ : वितस्ता के उद्गम वेरीनाग के पास कई प्राचीन स्थान हैं। यहां खनबल के पास अनंतनाग नाम से सुंदर तालाब है। बताया जाता है कि इस क्षेत्र में अनंतपुर नामक एक प्राचीन शहर दबा है। खनबल के आगे बीजब्यारा का प्राचीन मंदिर है। आगे चलकर यह नदी बारामुला पहुंचती है जिससे पहले ‘वराहमूलम्’ कहते थे।
आगे यह नदी श्रीनगर पहुंचती है। घाटी में प्राचीनकाल के राजा ललिता दित्ता के जमाने से ही नदी का पूजन होता था। पवित्र नदी के किनारों पर लोग पूजा के अलावा खनाबल से खादिनयार तक पूजा के दीये जलाते थे। इस नदी के किनारे बसे लगभग सभी प्राचीन मंदिरों को मुस्लिम आक्रांताओं ने तोड़कर नष्ट कर दिया है।
3. सरस्वती नदी : सरस्वती
को भी सिन्धु नदी के समान दर्जा प्राप्त है। ऋग्वेद में सरस्वती का
अन्नवती तथा उदकवती के रूप में वर्णन आया है। महाभारत में सरस्वती नदी के
प्लक्षवती नदी, वेदस्मृति, वेदवती आदि कई नाम हैं। ऋग्वेद में सरस्वती नदी
को 'यमुना के पूर्व' और 'सतलुज के पश्चिम' में बहती हुई बताया गया है।
ताण्डय और जैमिनीय ब्राह्मण में सरस्वती नदी को मरुस्थल में सूखा हुआ बताया
गया है। महाभारत में सरस्वती नदी के मरुस्थल में 'विनाशन' नामक जगह पर
विलुप्त होने का वर्णन है। इसी नदी के किनारे ब्रह्मावर्त था, कुरुक्षेत्र
था, लेकिन आज वहां जलाशय है।
वैदिक धर्मग्रंथों के अनुसार धरती पर नदियों की कहानी सरस्वती से शुरू होती है। सरिताओं में श्रेष्ठ सरस्वती सर्वप्रथम पुष्कर में ब्रह्म सरोवर से प्रकट हुई
सरस्वती का उद्गम, मार्ग और लीन :- महाभारत में मिले वर्णन के अनुसार सरस्वती नदी हरियाणा में यमुनानगर से थोड़ा ऊपर और शिवालिक पहाड़ियों से थोड़ा-सा नीचे आदिबद्री नामक स्थान से निकलती थी। आज भी लोग इस स्थान को तीर्थस्थल के रूप में मानते हैं और वहां जाते हैं। प्राचीनकाल में हिमालय से जन्म लेने वाली यह विशाल नदी हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और गुजरात के रास्ते आज के पाकिस्तानी सिन्ध प्रदेश तक जाकर सिन्धु सागर (अरब की खड़ी) में गुजरती थी।
भूकंप : वैदिक काल में एक और नदी दृषद्वती का वर्णन भी आता हैं। यह सरस्वती नदी की सहायक नदी थी। यह भी हरियाणा से होकर बहती थी। कालांतर में जब भीषण भूकंप आए और हरियाणा तथा राजस्थान की धरती के नीचे पहाड़ ऊपर उठे, तो नदियों के बहाव की दिशा बदल गई। एक और जहां सरस्वती लुप्त हो गई वहीं दृषद्वती के बहाव की दिशा बदल गई। इस दृषद्वती को ही आज यमुना कहा जाता है, इसका इतिहास 4,000 वर्ष पूर्व माना जाता है। भूचाल आने के कारण जब जमीन ऊपर उठी तो सरस्वती का पानी यमुना में गिर गया इसलिए यमुना में यमुना के साथ सरस्वती का जल भी प्रवाहित होने लगा। सिर्फ इसीलिए प्रयाग में तीन नदियों का संगम माना गया।
सरस्वती के तीर्थ : पुष्कर में ब्रह्म सरोवर से आगे सुप्रभा तीर्थ से आगे कांचनाक्षी से आगे मनोरमा तीर्थ से आगे गंगाद्वार में सुरेणु तीर्थ, कुरुक्षेत्र में ओधवती तीर्थ से आगे हिमालय में विमलोदका तीर्थ। उससे आगे सिन्धुमाता से आगे जहां सरस्वती की 7 धारा प्रकट हुईं, उसे सौगंधिक वन कहा गया है। उस सौगंधिक वन में प्लक्षस्रवण नामक तीर्थ है, जो सरस्वती तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है।
रेगिस्तान में उतथ्य मुनि के शाप से भूगर्भित होकर सरस्वती लुप्त हो गई और पर्वतों पर ही बहने लगी। सरस्वती पश्चिम से पूरब की ओर बहती हुई सुदूर पूर्व नैमिषारण्य पहुंची। अपनी 7 धाराओं के साथ सरस्वती कुंज पहुंचने के कारण नैमिषारण्य का वह क्षेत्र 'सप्त सारस्वत' कहलाया। यहां मुनियों के आवाहन करने पर सरस्वती अरुणा नाम से प्रकट हुई। अरुणा सरस्वती की 8वीं धारा बनकर धरती पर उतरी। अरुणा प्रकट होकर कौशिकी (आज की कोसी नदी) से मिल गई।
वैदिक धर्मग्रंथों के अनुसार धरती पर नदियों की कहानी सरस्वती से शुरू होती है। सरिताओं में श्रेष्ठ सरस्वती सर्वप्रथम पुष्कर में ब्रह्म सरोवर से प्रकट हुई
सरस्वती का उद्गम, मार्ग और लीन :- महाभारत में मिले वर्णन के अनुसार सरस्वती नदी हरियाणा में यमुनानगर से थोड़ा ऊपर और शिवालिक पहाड़ियों से थोड़ा-सा नीचे आदिबद्री नामक स्थान से निकलती थी। आज भी लोग इस स्थान को तीर्थस्थल के रूप में मानते हैं और वहां जाते हैं। प्राचीनकाल में हिमालय से जन्म लेने वाली यह विशाल नदी हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और गुजरात के रास्ते आज के पाकिस्तानी सिन्ध प्रदेश तक जाकर सिन्धु सागर (अरब की खड़ी) में गुजरती थी।
भूकंप : वैदिक काल में एक और नदी दृषद्वती का वर्णन भी आता हैं। यह सरस्वती नदी की सहायक नदी थी। यह भी हरियाणा से होकर बहती थी। कालांतर में जब भीषण भूकंप आए और हरियाणा तथा राजस्थान की धरती के नीचे पहाड़ ऊपर उठे, तो नदियों के बहाव की दिशा बदल गई। एक और जहां सरस्वती लुप्त हो गई वहीं दृषद्वती के बहाव की दिशा बदल गई। इस दृषद्वती को ही आज यमुना कहा जाता है, इसका इतिहास 4,000 वर्ष पूर्व माना जाता है। भूचाल आने के कारण जब जमीन ऊपर उठी तो सरस्वती का पानी यमुना में गिर गया इसलिए यमुना में यमुना के साथ सरस्वती का जल भी प्रवाहित होने लगा। सिर्फ इसीलिए प्रयाग में तीन नदियों का संगम माना गया।
सरस्वती के तीर्थ : पुष्कर में ब्रह्म सरोवर से आगे सुप्रभा तीर्थ से आगे कांचनाक्षी से आगे मनोरमा तीर्थ से आगे गंगाद्वार में सुरेणु तीर्थ, कुरुक्षेत्र में ओधवती तीर्थ से आगे हिमालय में विमलोदका तीर्थ। उससे आगे सिन्धुमाता से आगे जहां सरस्वती की 7 धारा प्रकट हुईं, उसे सौगंधिक वन कहा गया है। उस सौगंधिक वन में प्लक्षस्रवण नामक तीर्थ है, जो सरस्वती तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है।
रेगिस्तान में उतथ्य मुनि के शाप से भूगर्भित होकर सरस्वती लुप्त हो गई और पर्वतों पर ही बहने लगी। सरस्वती पश्चिम से पूरब की ओर बहती हुई सुदूर पूर्व नैमिषारण्य पहुंची। अपनी 7 धाराओं के साथ सरस्वती कुंज पहुंचने के कारण नैमिषारण्य का वह क्षेत्र 'सप्त सारस्वत' कहलाया। यहां मुनियों के आवाहन करने पर सरस्वती अरुणा नाम से प्रकट हुई। अरुणा सरस्वती की 8वीं धारा बनकर धरती पर उतरी। अरुणा प्रकट होकर कौशिकी (आज की कोसी नदी) से मिल गई।
4. गंगा नदी : ब्रह्मा से
लगभग 23वीं पीढ़ी बाद और राम से लगभग 14वीं पीढ़ी पूर्व भगीरथ हुए। भगीरथ
ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतारा था। इससे पहले उनके पूर्वज सगर ने भारत में
कई नदी और जलराशियों का निर्माण किया था। उन्हीं के कार्य को भगीरथ ने
आगे बढ़ाया। पहले हिमालय के एक क्षेत्र विशेष को देवलोक कहा जाता था।
गंगा का उद्गम : गंगा का उद्गम दक्षिणी हिमालय में तिब्बत सीमा के भारतीय हिस्से से होता है। गंगोत्री को गंगा का उद्गम माना गया है। गंगोत्री उत्तराखंड राज्य में स्थित गंगा का उद्गम स्थल है। सर्वप्रथम गंगा का अवतरण होने के कारण ही यह स्थान गंगोत्री कहलाया। किंतु वस्तुत: उनका उद्गम 18 मील और ऊपर श्रीमुख नामक पर्वत से है। वहां गोमुख के आकार का एक कुंड है जिसमें से गंगा की धारा फूटी है। 3,900 मीटर ऊंचा गौमुख गंगा का उद्गम स्थल है। इस गोमुख कुंड में पानी हिमालय के और भी ऊंचाई वाले स्थान से आता है।
यह नदी तीन देशों के क्षेत्र का उद्धार करती है- भारत, नेपाल और बांग्लादेश। नेपाल, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल और फिर बांग्लादेश में घुसकर यह बंगाल की खाड़ी में समा जाती है।
हिमाचल के हिमालय से निकलकर यह नदी प्रारंभ में 3 धाराओं में बंटती है- मंदाकिनी, अलकनंदा और भगीरथी। देवप्रयाग में अलकनंदा और भगीरथी का संगम होने के बाद यह गंगा के रूप में दक्षिण हिमालय से ऋषिकेश के निकट बाहर आती है और हरिद्वार के बाद मैदानी इलाकों में प्रवेश करती है।
फिर यह नदी उत्तराखंड के बाद मध्यदेश से होती हुई यह नदी बिहार में पहुंचती है और फिर पश्चिम बंगाल के हुगली पहुंचती है। यहां से बांग्लादेश में घुसकर यह ब्रह्मपुत्र नदी से मिलकर गंगासागर, जिसे आजकल बंगाल की खाड़ी कहा जाता है, में मिल जाती है। इस दौरान यह 2,300 किलोमीटर से ज्यादा का सफर तय करती है। इस बीच इसमें कई नदियां मिलती हैं जिसमें प्रमुख हैं- सरयू, यमुना, सोन, रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, बूढ़ी गंडक, कोसी, घुघरी, महानंदा, हुगली, पद्मा, दामोदर, रूपनारायण, ब्रह्मपुत्र और अंत में मेघना।
गंगा की धारा : हिमालय से निकलकर गंगा 12 धाराओं में विभक्त होती है इसमें मंदाकिनी, भागीरथी, धौलीगंगा और अलकनंदा प्रमुख है। गंगा नदी की प्रधान शाखा भागीरथी है जो कुमाऊं में हिमालय के गोमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद से निकलती है। यहां गंगाजी को समर्पित एक मंदिर भी है।
गंगा के तट के तीर्थ :गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक गंगा के तट पर हजारों तीर्थ है। गंगा को भारत का हृदय माना जाता है। इसके एक और सिन्धु और सरस्वती बहती है तो दूसरी ओर ब्रह्मपुत्र।
गंगा का उद्गम : गंगा का उद्गम दक्षिणी हिमालय में तिब्बत सीमा के भारतीय हिस्से से होता है। गंगोत्री को गंगा का उद्गम माना गया है। गंगोत्री उत्तराखंड राज्य में स्थित गंगा का उद्गम स्थल है। सर्वप्रथम गंगा का अवतरण होने के कारण ही यह स्थान गंगोत्री कहलाया। किंतु वस्तुत: उनका उद्गम 18 मील और ऊपर श्रीमुख नामक पर्वत से है। वहां गोमुख के आकार का एक कुंड है जिसमें से गंगा की धारा फूटी है। 3,900 मीटर ऊंचा गौमुख गंगा का उद्गम स्थल है। इस गोमुख कुंड में पानी हिमालय के और भी ऊंचाई वाले स्थान से आता है।
यह नदी तीन देशों के क्षेत्र का उद्धार करती है- भारत, नेपाल और बांग्लादेश। नेपाल, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल और फिर बांग्लादेश में घुसकर यह बंगाल की खाड़ी में समा जाती है।
हिमाचल के हिमालय से निकलकर यह नदी प्रारंभ में 3 धाराओं में बंटती है- मंदाकिनी, अलकनंदा और भगीरथी। देवप्रयाग में अलकनंदा और भगीरथी का संगम होने के बाद यह गंगा के रूप में दक्षिण हिमालय से ऋषिकेश के निकट बाहर आती है और हरिद्वार के बाद मैदानी इलाकों में प्रवेश करती है।
फिर यह नदी उत्तराखंड के बाद मध्यदेश से होती हुई यह नदी बिहार में पहुंचती है और फिर पश्चिम बंगाल के हुगली पहुंचती है। यहां से बांग्लादेश में घुसकर यह ब्रह्मपुत्र नदी से मिलकर गंगासागर, जिसे आजकल बंगाल की खाड़ी कहा जाता है, में मिल जाती है। इस दौरान यह 2,300 किलोमीटर से ज्यादा का सफर तय करती है। इस बीच इसमें कई नदियां मिलती हैं जिसमें प्रमुख हैं- सरयू, यमुना, सोन, रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, बूढ़ी गंडक, कोसी, घुघरी, महानंदा, हुगली, पद्मा, दामोदर, रूपनारायण, ब्रह्मपुत्र और अंत में मेघना।
गंगा की धारा : हिमालय से निकलकर गंगा 12 धाराओं में विभक्त होती है इसमें मंदाकिनी, भागीरथी, धौलीगंगा और अलकनंदा प्रमुख है। गंगा नदी की प्रधान शाखा भागीरथी है जो कुमाऊं में हिमालय के गोमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद से निकलती है। यहां गंगाजी को समर्पित एक मंदिर भी है।
गंगा के तट के तीर्थ :गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक गंगा के तट पर हजारों तीर्थ है। गंगा को भारत का हृदय माना जाता है। इसके एक और सिन्धु और सरस्वती बहती है तो दूसरी ओर ब्रह्मपुत्र।
5. रेवा नदी : - नर्मदा नदी
को रेवा नदी भी कहा जाता है। यह नदी मध्यप्रदेश के विंध्याचल की मैकाल
पहाड़ी श्रृंखला से अमरकंटक क्षेत्र से निकलकर गुजरात में होते हुए
सिन्धुसागर (अरब की खाड़ी) में गिरती है। इसके बीचोबीच स्थित है नेमावर।
नेमावर को प्राचीन काल में नैमिषारण्य क्षेत्र कहा जाता था जहां ऋषि-मुनि
तपस्या करते थे।
नर्मदा नदी- एक परिचय-
नर्मदा नदी- एक परिचय-

नर्मदा नदी को मध्यप्रदेश की जीवन-रेखा कहा जाता है। पर्वतराज मैखल की पुत्री नर्मदा को रेवा के नाम से भी जाना जाता है।
नर्मदा भारतीय प्रायद्वीप की सबसे प्रमुख और भारत की पांचवी बड़ी नदी मानी जाती है। विन्ध्य की पहाड़ियों में बसा अमरकंटक एक वन प्रदेश है। अमरकंटक को ही नर्मदा का उद्गम स्थल माना गया है। यह समुद्र तल से 3500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। भारत में चार नदियों को चार वेदों के रूप में माना गया है।

यह
क्षेत्र हैहयवंशियों के अधीन था और इस क्षेत्र में परशुराम के पिता रहते
थे। स्कंद पुराण में इस नदी का वर्णन रेवा खंड के अंतर्गत किया गया है।
नर्मदा, गोदावरी और महानदी के किनारे ही भगवान राम ने अपना वनवास काटा था।
नर्मदा तट के तीर्थ- तेरह सौ किलोमीटर का सफर तय
करके अमरकंटक से निकलकर नर्मदा विन्ध्य और सतपुड़ा के बीच से होकर भडूच
(भरुच)के पास खम्भात की खाड़ी में अरब सागर से जा मिलती है।
ऐतिहासिक दृष्टि से नर्मदा के तट बहुत ही प्रचीन माने जाते हैं। पुरातत्व विभाग मानता है कि नर्मदा के तट के कई इलाकों में प्राचीन सभ्यताओं के अवशेष पाएँ गए है। ये सभ्यताएँ सिंधु घाटी की सभ्यता से मेल खाती है साथी ही इनकी प्राचीनता सिंधु सभ्यता से भी पुरानी मानी जाती है।
देश की सभी नदियों की अपेक्षा नर्मदा विपरित दिशा में बहती है। नर्मदा एक पहाड़ी नदी होने के कारण कई स्थानों पर इसकी धारा बहुत ऊँचाई से गिरती है। अनेक स्थानों पर यह प्राचीन और बड़ी-बड़ी चट्टानों के बीच से सिंहनाद करती हुई गुजरती हैं।
भारत की नदियों में नर्मदा का अपना महत्व है। न जाने कितनी भूमि को इसने हरा-भरा बनाया है। कितने ही तीर्थ आज भी प्राचीन इतिहास के गवाह है। नर्मदा के जल का राजा है मगरमच्छ जिसके बारे में कहा जाता है कि धरती पर उसका अस्तित्व 25 करोड़ साल पुराना है। माँ नर्मदा मगरमच्छ पर सवार होकर ही यात्रा करती हैं, तो आओ चलते हैं हम भी नर्मदा की यात्रा पर।
अमरकंटक :- सोहागपुर तहसील में विंध्य और सतपुड़ा पहाड़ों में अमरकंटक नाम का एक छोटा-सा गाँव है। उसी के पास से नर्मदा एक गोमुख से निकलती है। कहते हैं, किसी जमाने में यहाँ पर मेकल, व्यास, भृगु और कपिल आदि ऋषियों ने तप किया था। ध्यानियों के लिए अमरकंटक बहुत ही महत्व का स्थान है।


ऐतिहासिक दृष्टि से नर्मदा के तट बहुत ही प्रचीन माने जाते हैं। पुरातत्व विभाग मानता है कि नर्मदा के तट के कई इलाकों में प्राचीन सभ्यताओं के अवशेष पाएँ गए है। ये सभ्यताएँ सिंधु घाटी की सभ्यता से मेल खाती है साथी ही इनकी प्राचीनता सिंधु सभ्यता से भी पुरानी मानी जाती है।
देश की सभी नदियों की अपेक्षा नर्मदा विपरित दिशा में बहती है। नर्मदा एक पहाड़ी नदी होने के कारण कई स्थानों पर इसकी धारा बहुत ऊँचाई से गिरती है। अनेक स्थानों पर यह प्राचीन और बड़ी-बड़ी चट्टानों के बीच से सिंहनाद करती हुई गुजरती हैं।
भारत की नदियों में नर्मदा का अपना महत्व है। न जाने कितनी भूमि को इसने हरा-भरा बनाया है। कितने ही तीर्थ आज भी प्राचीन इतिहास के गवाह है। नर्मदा के जल का राजा है मगरमच्छ जिसके बारे में कहा जाता है कि धरती पर उसका अस्तित्व 25 करोड़ साल पुराना है। माँ नर्मदा मगरमच्छ पर सवार होकर ही यात्रा करती हैं, तो आओ चलते हैं हम भी नर्मदा की यात्रा पर।
अमरकंटक :- सोहागपुर तहसील में विंध्य और सतपुड़ा पहाड़ों में अमरकंटक नाम का एक छोटा-सा गाँव है। उसी के पास से नर्मदा एक गोमुख से निकलती है। कहते हैं, किसी जमाने में यहाँ पर मेकल, व्यास, भृगु और कपिल आदि ऋषियों ने तप किया था। ध्यानियों के लिए अमरकंटक बहुत ही महत्व का स्थान है।

मंडला :- नर्मदा का पहला पड़ाव मंडला है, जो अमरकंटक से लगभग 295 किमी की दूरी पर नर्मदा के उत्तरी तट पर बसा है। सुंदर घाटों और मंदिरों के कारण यहाँ पर स्थित सहस्रधारा का दृश्य बहुत सुन्दर है। कहते हैं कि राजा सहस्रबाहु ने यहीं अपनी हजार भुजाओं से नर्मदा के प्रवाह को रोकने का प्रयत्न किया था इसीलिए असका नाम 'सहस्रधारा' है।
भेड़ा-घाट :- यह स्थान जबलपुर से 19 किमी पर स्थित है। किसी जमाने में भृगु ऋषि ने यहाँ पर तप किया था। उत्तर की ओर से वामन गंगा नाम की एक छोटी नदी नर्मदा में मिलती है। इस संगम अर्थात भेड़ा के कारण ही इस स्थान को 'भेड़ा-घाट' कहते हैं।
यहाँ
थोड़ी दूर पर नर्मदा का एक 'धुआँधार' प्रपात है। धुआँधार के बाद साढ़े तीन
किमी तक नर्मदा का प्रवाह दोनों ओर सौ-सौ फुट से भी अधिक ऊँची संगमरमरी
दीवारों के बीच से सिंहनाद करता हुआ गुजरता है।
होशंगाबाद :- भेड़ा-घाट
के बाद दूसरे मनोरम तीर्थ हैं- ब्राह्मण घाट, रामघाट, सूर्यकुंड और
होशंगाबाद। इसमें होशंगाबाद प्रसिद्ध है। यहाँ पहले जो गाँव था, उसका नाम
'नर्मदापुर' था। इस गाँव को होशंगशाह ने नए सिरे से बसाया था। यहाँ सुंदर
और पक्के घाट है, लेकिन होशंगाबाद के पूर्व के घाटों का ही धार्मिक महत्व
है।
नेमावर :
होशंगाबाद
के बाद नेमावर में नार्मदा विश्राम करती है। नेमावर में सिद्धेश्वर महादेव
का महाभारत कालीन प्राचीन मंदिर है। नेमावर नर्मदा की यात्रा का बीच का
पड़ाव है, इसलिए इसे 'नाभि स्थान' भी कहते हैं। यहाँ से भडूच और अमरकंटक
दोनों ही समान दूरी पर है। पुराणों में इस स्थान का 'रेवाखंड' नाम से कई
जगह महिमामंडन किया गया है।
धायड़ी कुंड : -
नेमावर
और ॐकारेश्वर के बीच धायड़ी कुंड नर्मदा का सबसे बड़ा जल-प्रपात है। 50
फुट की ऊँचाई से यहाँ नर्मदा का जल एक कुंड में गिरता है। जल के साथ-साथ इस
कुंड में छोटे-बड़े पत्थर भी गिरते रहते हैं, जो जलघर्षण के कारण सुंदर,
गोल और चमकीले शिवलिंग बन जाते हैं। सारे देश में शिवलिंग अधिकतर यहीं से
जाते हैं। यहीं पुनासा की जल विद्युत-योजना का बाँध तबा नदी पर बना है।
ॐकारेश्वर :
कहते
हैं कि वराह कल्प में जब सारी पृथ्वी जल में मग्न हो गई थी तो उस वक्त भी
मार्केंडेय ऋषि का आश्रम जल से अछूता था। यह आश्रम नर्मदा के तट पर
ॐकारेश्वर में है। ॐकारेश्वर में ज्योर्तिलिंग होने के कारण यह प्रसिद्ध
प्राचीन हिंदू तीर्थ है।
ॐकारेश्वर के आसपास दोनों तीरों पर बड़ा घना वन है, जिसे 'सीता वन' कहते हैं। वाल्मीकि ऋषि का आश्रम यहीं कहीं था।
मंडलेश्वर और महेश्वर :
ॐकारेश्वर
से महेश्वर लगभग 64 किमी की दूरी पर स्थित है। महेश्वर से पहले नर्मदा के
उत्तर तट पर एक कस्बा है मंडलेश्वर। विद्धानों का मत है कि मंडन मिश्र का
असली स्थान यही है और महेश्वर को प्राचीन माहिष्मती नगरी माना जाता है।
मंडलेश्वर से महेश्वर लगभग 8 किमी है।
महेश्वर से कोई 19 किमी पर खलघाट है। इस स्थान को 'कपिला तीर्थ' भी कहते हैं। कपिला तीर्थ से 12 किमी पश्चिम में धर्मपुरी के पास महर्षि दधीचि का आश्रम बताया गया है। स्कंद-पुराण और वायु पुराण में इसका उल्लेख मिलता है।
शुक्लेश्वर :
धर्मपुरी
के बाद कुश ऋषि की तपोभूति शुक्लेश्वर से आगे नर्मदा माता चिरवलदा पहुँचती
हैं। माना जाता है कि यहाँ विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्री
वसिष्ठ और कश्यप ने तप किया था।
बावन गजा :
शुक्लेश्वर
से लगभग पाँच किलोमिटर बड़वानी के पास सतपुड़ा की घनी पहाड़ियों में बावन
गजा में भगवान पार्श्वनाथ की 84 फुट ऊँची मूर्ति है। यह एक जैन तीर्थ है।
बावन गजा की पहाड़ी के ऊपर एक मन्दिर भी है। हिन्दुजन इसे दत्तात्रेय की
पादुका कहते हैं। जैन इसे मेघनाद और कुंभकर्ण की तपोभूमि मानते हैं।
शूलपाणी :
बावन
गजा के आगे वरुण भगवान की तपोभूमि हापेश्वर के दुर्गम जंगल के बाद शूलपाणी
नामक तीर्थ है। यहाँ शूलपाणी के अलावा कमलेश्वर, राजराजेश्वर आदि और भी कई
मन्दिर हैं।
अन्य तीर्थ :
शूलपाणी
से आगे चलकर क्रमश: गरुड़ेश्वर, शुक्रतीर्थ, अंकतेश्वर, कर्नाली, चांदोद,
शुकेश्वर, व्यासतीर्थ होते हुए नर्मदा अनसूयामाई के स्थान पहुँचती हैं,
जहाँ अत्री -ऋषि की आज्ञा से देवी अनसूयाजी ने पुत्र प्राप्ति के लिए तप
किया था और उससे प्रसन्न होकर ब्रहा, विष्णु, महेश तीनों देवताओं ने यहीं
दत्तात्रेय के रूप में उनका पुत्र होकर जन्म ग्रहण किया था।
आगे
नर्मदा कंजेठा पहुँचती है जहाँ शकुन्तला के पुत्र भरत ने अनेक यज्ञ किए।
फिर और आगे सीनोर में ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से अनेक पवित्र स्थान से
गुजरती है।
अंगारेश्वर :
सीनोर
के बाद भडूच तक कई छोटे-बड़े गाँव के बाद अंगारेश्वर में मंगल ने तप करके
अंगारेश्वर की स्थापना की थी। कहते हैं कि अंगारेश्वर से आगे निकोरा में
पृथ्वी का उद्धार करने के बाद वराह भगवान ने इस तीर्थ की स्थापना की। फिर
आगे क्रमश: लाडवाँ में कुसुमेश्वर तीर्थ है। मंगलेश्वर में कश्यप कुल में
पैदा हुए भार्गव ऋषि ने तप किया था।
यात्रा का अंत :
इसके
बाद कुछ मील चलकर नर्मदा भडूच पहुँचती हैं, जहाँ नर्मदा समुद्र में मिल
जाती है। भडूच को 'भृगु-कच्छ' अथवा 'भृगु-तीर्थ' भी कहते हैं। यहाँ भृगु
ऋषि का निवास था। यहीं राजा बलि ने दस अश्वमेध-यज्ञ किए थे। भडूच के सामने
के तीर पर समुद्र के निकट विमलेश्वर नामक स्थान है।
यह क्षेत्र हैहयवंशियों के अधीन था और इस क्षेत्र में परशुराम के पिता रहते थे। स्कंद पुराण में इस नदी का वर्णन रेवा खंड के अंतर्गत किया गया है। नर्मदा, गोदावरी औरमहानदी के किनारे ही भगवान राम ने अपना वनवास काटा था।
गंगा को ऋग्वेद, यमुना को यजुर्वेद, सरस्वती को अथर्ववेद और नर्मदा को सामदेव। सामदेव कलाओं का प्रतीक है।नर्मदा ने भी लोक-कलाओं और शिल्प-कलाओं को पाला-पोसा है। नर्मदा अपने उद्गम स्थल अमरकंटक से निकलकर लगभग 8 किलोमीटर दूरी पर दुग्धधारा जलप्रपात तथा 10 किलोमीटर पर दूरी पर कपिलधारा जलप्रपात बनाती हैं।
मंडला से आगे बढ़ते हुए जबलपुर के पास बेशकीमती संगमरमर की गुफाएं निर्मित करती है। यहां से बरसते नर्मदा जल से धुआंधार जलप्रपात बनता है। इस जलप्रपात की ऊंचाई लगभग 50 फुट है।
संगमरमर की खूबसूरत संकरी घाटियों से बलखाती नर्मदा नरसिंहपुर-होशंगाबाद की धरती को अभिस्पर्श करती, खंडवा से गुजरते हुए महेश्वर के पास 8 किलोमीटर का सहस्त्रधारा जलप्रपात बनाती है।
रास्ते में नर्मदा नदी मंधार तथा दरदी नामक प्रपातों को भी आकर्षक रूप देती चलती हैं। तत्पश्चात् महाराष्ट्र से होती हुई, भडूच शहर की पश्चिमी दिशा में खम्भात की खाड़ी में गिरकर अरब सागर में विलीन हो जाती है।
6. महानदी : छत्तीसगढ़ की गंगा
छत्तीसगढ़
और उड़ीसा की सबसे बड़ी नदी महानदी का प्राचीन नाम चित्रोत्पला था। इसके
अलावा इसे महानंदा और नीलोत्पला के नाम से भी जाना जाता है। महानदी का
उद्गम रायपुर के समीप धतरी जिले में स्थित सिहावा नामक पर्वत से हुआ है।
इस नदी का प्रवाह दक्षिण से उत्तर की ओर है। इस नदी को 'छत्तीसगढ़ की गंगा'
भी कहा जाता है।
7. गोदावरी नदी : गौतम से संबंध जुड जाने के कारण इसे गौतमी भी कहा जाने लगा। गोदावरी दक्षिण भारत की एक प्रमुख नदी है। इसकी उत्पत्ति पश्चिमघाट की पर्वत श्रेणी के अंतर्गत त्रियम्बक पर्वत से हुई है, जो महाराष्ट्र में स्थित है। यहीं त्रियम्बककेश्वर तीर्थ है जो नासिक जिले में है। नदी की लंबाई करीब करीब 900 मील है।
गोदावरी की उपनदियों में प्रमुख हैं प्राणहिता, इन्द्रावती और मंजिरा। यह नदी महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश से बहते हुए राजहमुन्द्री शहर के समीप बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है। इस नदी की प्रमुख शखाएं हैं:- गौतमी, वसिष्ठा, कौशिकी, आत्रेयी, वृद्धगौतमी, तुल्या और भारद्वाजी।
इन्हें महापुण्यप्राप्ति कारक बताया गया है-
सप्तगोदावरी स्नात्वा नियतो नियताशन:।
महापुण्यमप्राप्नोति देवलोके च गच्छति॥
8. कृष्णा नदी:- कृष्णा
नदी दक्षिण भारत की एक महत्त्वपूर्ण नदी है, इसका उद्गम पश्चिमी घाट के
पर्वत महाबालेश्वर (महाराष्ट्र) से होता है। यह नदी भारत की दूसरी सबसे
बड़ी नदी है। यह महाराष्ट्र में 303 किमी आंध्रप्रदेश में 1300 किमी तथा
कर्नाटक में 480 किमी की यात्रा कर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती हैं।
कृष्णा नदी तट के तीर्थ
कृष्णा नदी में भीमा और तुंगभद्रा दो बड़ी सहायक नदियों सहित 6 उपनदियां गिरती हैं। कृष्णा नदी की उपनदियों में प्रमुख हैं: तुंगभद्रा, घाटप्रभा, मूसी और भीमा। कृष्णा बंगाल की खाड़ी में मसुलीपट्म के निकट गिरती है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र के मध्य कृष्णा नदी जल बटवारे से संबंधित विवाद है। महाभारत सभा पर्व में कृष्णा को कृष्णवेणा कहा गया है और गोदावरी और कावेरी के बीच में इसका उल्लेख है जिससे इसकी वास्तविक स्थिति का बोध होता है। कृष्णा और वेणी के संगम पर माहुली नामक प्राचीन तीर्थ है। पुराणों में कृष्णा को विष्णु के अंश से संभूत माना गया है।
कृष्णा नदी में भीमा और तुंगभद्रा दो बड़ी सहायक नदियों सहित 6 उपनदियां गिरती हैं। कृष्णा नदी की उपनदियों में प्रमुख हैं: तुंगभद्रा, घाटप्रभा, मूसी और भीमा। कृष्णा बंगाल की खाड़ी में मसुलीपट्म के निकट गिरती है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र के मध्य कृष्णा नदी जल बटवारे से संबंधित विवाद है। महाभारत सभा पर्व में कृष्णा को कृष्णवेणा कहा गया है और गोदावरी और कावेरी के बीच में इसका उल्लेख है जिससे इसकी वास्तविक स्थिति का बोध होता है। कृष्णा और वेणी के संगम पर माहुली नामक प्राचीन तीर्थ है। पुराणों में कृष्णा को विष्णु के अंश से संभूत माना गया है।
9. कावेरी नदी :- दक्षिण
की गंगा कहलाने वाली कावेरी का वर्णन कई पुराणों में बार-बार आता है।
कावेरी को बहुत पवित्र नदी माना गया है। कावेरी नदी में मिलने के वाली
मुख्य नदियों में हरंगी, हेमवती, नोयिल, अमरावती, सिमसा, लक्ष्मणतीर्थ,
भवानी, काबिनी मुख्य हैं। दक्षिण की इस प्रमुख नदी कावेरी का विस्तृत
विवरण विष्णु पुराण में दिया गया है।
यह सह्याद्रि पर्वत के दक्षिणी छोर से निकल कर दक्षिण-पूर्व की दिशा में कर्नाटक और तमिलनाडु से बहती हुई लगभग 800 किमी मार्ग तय कर कावेरीपट्टनम के पास बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच इसके जल बंटवारे को लेकर विवाद है।
कावेरी तीर्थ : कावेरी नदी तीन स्थानों पर दो शाखाओं में बंट कर फिर एक हो जाती है, जिससे तीन द्वीप बन गए हैं, उन द्वीपों पर क्रमश: आदिरंगम, शिवसमुद्रम तथा श्रीरंगम नाम से श्री विष्णु भगवान के भव्य मंदिर हैं। महान शैव तीर्थ चिदम्बरम तथा जंबुकेश्वरम भी श्रीरंगम के पास स्थित हैं। इनके अतिरिक्त प्राचीन तथा गौरवमय तीर्थ नगर तंजौर, कुंभकोणम तथा त्रिचिरापल्ली इसी पवित्र नदी के तट पर स्थित हैं, जिनसे कावेरी की महत्ता बढ़ गई है।
यह सह्याद्रि पर्वत के दक्षिणी छोर से निकल कर दक्षिण-पूर्व की दिशा में कर्नाटक और तमिलनाडु से बहती हुई लगभग 800 किमी मार्ग तय कर कावेरीपट्टनम के पास बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच इसके जल बंटवारे को लेकर विवाद है।
कावेरी तीर्थ : कावेरी नदी तीन स्थानों पर दो शाखाओं में बंट कर फिर एक हो जाती है, जिससे तीन द्वीप बन गए हैं, उन द्वीपों पर क्रमश: आदिरंगम, शिवसमुद्रम तथा श्रीरंगम नाम से श्री विष्णु भगवान के भव्य मंदिर हैं। महान शैव तीर्थ चिदम्बरम तथा जंबुकेश्वरम भी श्रीरंगम के पास स्थित हैं। इनके अतिरिक्त प्राचीन तथा गौरवमय तीर्थ नगर तंजौर, कुंभकोणम तथा त्रिचिरापल्ली इसी पवित्र नदी के तट पर स्थित हैं, जिनसे कावेरी की महत्ता बढ़ गई है।
अंत में सबसे महत्वपूर्ण ब्रह्मपुत्र...
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