Sunday, May 15, 2016

भगवान शिवजी के पूजन में वर्जित हैं ये तत्व

भगवान शिवजी जिसे सृष्टि का आधार कहा जाता है। भगवान शिवजी जो‍कि देवों के देव महादेव है। महादेव की अर्चना तरह-तरह से होती है। महादेव का पूजन काफी सरल होता है। भगवान को इसलिए ही भोलेनाथ कहा जाता है। भगवान शिवजी अपने श्रद्धालुओं और भक्तों पर जल्द प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शिवजी को साधुओं द्वारा भी माना जाता है और गृहस्थों द्वारा भी। शिव अपनी आदि शक्ति के साथ पूर्णता में रहते हैं। साथ ही श्रद्धालुओं को सरल स्वरूप में दर्शन देते हैं।

महाभारत काल में उल्लेख मिलता है कि पांडवों के सामने भगवान शिवजी वृषभ स्वरूप में प्रकट हुए थे। जब वे पांडवों से प्रसन्न हुए तो उन्हें आशीर्वाद देकर धरती में मिट्टी आर पाषाण के तौर पर विलीन होकर अपने धाम चले गए। ऐसे हैं भगवान शिवजी जिनका इस सृष्टि के हर लोक में हर कण - कण में निवास है। भगवान शिवजी की आराधना यूं तो कई तरह से की जाती है। मगर कुछ तत्व हैं जो भगवान शिवजी को चढ़ाए नहीं जाते हैं।
हॉ कुछ विशेष परिस्थितियों में जरूर भगवान शिवजी को ये तत्व चढ़ते हैं। ऐसी परिस्थितियां और ऐसे स्वरूप अपवाद हैं। यह जानकर आपको भी आश्चर्य होगा। आईए ऐसे कौन से तत्व हैं। जो भगवान को नहीं चढ़ते हैं।
दरअसल कुमकुम सौभाग्य का प्रतीक है। इसे विवाहित महिलाऐं अपनी मांग में सजाती हैं तो यह देवी - देवताओं पर चढ़ाया जाता है लेकिन श्री महादेव और उनके शिवलिंग पर कुमकुम समर्पित नहीं किया जाता। दरअसल भगवान शिव स्वयं में ही एक बड़े साधक हैं और वे ध्यान में रहते हैं दूसरी ओर उन्हें विनाशक माना जाता है ऐसे में उन्हें यह नहीं चढ़ाया जाता लेकिन मध्यप्रदेश के उज्जैन में शिव मंगलनाथ स्वरूप में विराजते हैं। यहां मंगलदेव का पूजन होता है और उनका कुमकुम से अभिषेक होता है। भगवान शिव का जिन तत्वों से अभिषेक किया जाता है उन्हें ग्रहण नहीं किया जाता है। भगवान शिव पर हल्दी चढ़ाने का भी विधान नहीं है दरअसल हल्दी स्त्रियों की सुंदरता को निखारने में प्रयोग में लाई जाती है। जिसके कारण इसे भगवान शिवजी पर नहीं चढ़ाया जाता लेकिन कहीं - कहीं भगवान शिवजी का शिवलिंग पूजन देव गुरू बृहस्पति के तौर पर किया जाता है। ऐसे में देवगुरू बृहस्पति स्वरूप में उन्हें की गांठ समर्पित की जाती है।  

Wednesday, May 6, 2015

हिन्दू धर्म का इतिहास

हिन्दू धर्म का इतिहास अति प्राचीन है। इस धर्म को वेदकाल से भी पूर्व का माना जाता है, क्योंकि वैदिक काल और वेदों की रचना का काल अलग-अलग माना जाता है। यहां शताब्दियों से मौखिक परंपरा चलती रही, जिसके द्वारा इसका इतिहास व ग्रन्थ आगे बढ़ते रहे। उसके बाद इसे लिपिबद्ध करने का काल भी बहुत लंबा रहा है। हिन्दू धर्म के सर्वपूज्य ग्रन्थ हैं वेद। वेदों की रचना किसी एक काल में नहीं हुई। विद्वानों ने वेदों के रचनाकाल का आरंभ ४५०० ई.पू. से माना है। यानि यह धीरे-धीरे रचे गए और अंतत: पहले वेद को तीन भागों में संकलित किया गया- ऋग्वेद, यजुर्वेद व सामवेद जि‍से वेदत्रयी कहा जाता था। मान्यता अनुसार वेद का वि‍भाजन राम के जन्‍म के पूर्व पुरुरवा ऋषि के समय में हुआ था। बाद में अथर्ववेद का संकलन ऋषि‍ अथर्वा द्वारा कि‍या गया। वहीं एक अन्य मान्यता अनुसार कृष्ण के समय में वेद व्यास ने वेदों का विभाग कर उन्हें लिपिबद्ध किया था। इस मान से लिखित रूप में आज से ६५०८ वर्ष पूर्व पुराने हैं वेद। श्रीकृष्ण के आज से ५३०० वर्ष पूर्व होने के तथ्‍य ढूँढ लिए गए हैं।


 


 हिंदू और जैन धर्म की उत्पत्ति पूर्व आर्यों की अवधारणा में है जो ४५०० ई.पू. मध्य एशिया से हिमालय
तक फैले थे। आर्यों की ही एक शाखा ने पारसी धर्म की स्थापना भी की। इसके बाद क्रमश: यहूदी धर्म दो हजार ई.पू., बौद्ध धर्म पाँच सौ ई.पू., ईसाई धर्म सिर्फ दो हजार वर्ष पूर्व, इस्लाम धर्म आज से १४०० वर्ष पूर्व हुआ।
धार्मिक साहित्य अनुसार हिंदू धर्म की कुछ और भी धारणाएँ हैं। मान्यता यह भी है कि ९० हजार वर्ष पूर्व इसका आरंभ हुआ था। रामायण, महाभारत और पुराणों में सूर्य और चंद्रवंशी राजाओं की वंश परम्परा का उल्लेख उपलब्ध है। इसके अलावा भी अनेक वंशों की उत्पति और परम्परा का वर्णन आता है। उक्त सभी को इतिहास सम्मत क्रमबद्ध लिखना बहुत ही कठिन कार्य है, क्योंकि पुराणों में उक्त इतिहास को अलग-अलग तरह से व्यक्त किया गया है जिसके कारण इसके सूत्रों में बिखराव और भ्रम निर्मित जान पड़ता है, फिर भी धर्म के ज्ञाताओं के लिए यह भ्रम नहीं है।
असल में हिंदुओं ने अपने इतिहास को गाकर, रटकर और सूत्रों के आधार पर मुखाग्र जिंदा बनाए रखा। यही कारण रहा कि वह इतिहास धीरे-धीरे काव्यमय और श्रृंगारिक होता गया जिसे आधुनिक लोग इतिहास मानने को तैयार नहीं हैं। वह समय ऐसा था जबकि कागज और कलम नहीं होते थे। इतिहास लिखा जाता था शिलाओं पर, पत्थरों पर और मन पर।
हिंदू धर्म के इतिहास ग्रंथ पढ़ें तो ऋषि-मुनियों की परम्परा के पूर्व मनुओं की परम्परा का उल्लेख मिलता है जिन्हें जैन धर्म में कुलकर कहा गया है। ऐसे क्रमश: १४ मनु माने गए हैं जिन्होंने समाज को सभ्य और तकनीकी सम्पन्न बनाने के लिए अथक प्रयास किए। धरती के प्रथम मानव का नाम स्वायंभव मनु था और प्रथम ‍स्त्री थी शतरूपा। महाभारत में आठ मनुओं का उल्लेख है। इस वक्त धरती पर आठवें मनु वैवस्वत की ही संतानें हैं। आठवें मनु वैवस्वत के काल में ही भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार हुआ था।
पुराणों में हिंदू इतिहास का आरंभ सृष्टि उत्पत्ति से ही माना जाता है। ऐसा कहना कि यहाँ से शुरुआत हुई यह ‍शायद उचित न होगा फिर भी हिंदू इतिहास ग्रंथ महाभारत और पुराणों में मनु (प्रथम मानव) से भगवान कृष्ण की पीढ़ी तक का उल्लेख मिलता है।